जनजातियाँ वनों की सबसे बड़ी पोषक और संरक्षक हैं: कमिश्नर बी.एस. जामोद
रीवा, 26 मई 2025
वनाधिकार अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को लेकर रीवा एवं शहडोल संभाग की संयुक्त कार्यशाला का आयोजन विन्ध्या रिट्रीट होटल, रीवा के सभागार में किया गया। दो दिवसीय कार्यशाला के प्रथम दिन वनाधिकार समिति के सदस्यों को प्रशिक्षण दिया गया, जबकि दूसरे दिन जिला स्तरीय समितियों को सामुदायिक दावों के निराकरण संबंधी प्रक्रियाओं से अवगत कराया गया।
कार्यशाला के दौरान रीवा संभाग के कमिश्नर बी.एस. जामोद ने कहा कि “जनजातीय परिवार पीढ़ियों से वनों के साथ सह-अस्तित्व में जीवन जीते आए हैं। वे वनों के पोषक और संरक्षक रहे हैं। यदि ये जनजातियाँ न होतीं, तो आज वनों का अस्तित्व नाममात्र रह जाता।” उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत दावों में अच्छे कार्य हुए हैं, अब समय है कि सामुदायिक दावों को भी त्वरित रूप से मान्यता दी जाए।
शहडोल संभाग की कमिश्नर सुरभि गुप्ता ने कहा कि कार्यशाला के माध्यम से सामुदायिक दावों की प्रक्रिया को लेकर सभी स्तरों पर स्पष्टता आई है। अब इसमें किसी भी प्रकार की शंका नहीं रहनी चाहिए। उन्होंने सभी संबंधित विभागों से आग्रह किया कि सामुदायिक दावों का तत्परता से निराकरण किया जाए।
रीवा के मुख्य वन संरक्षक राजेश राय ने कहा कि वन संरक्षण और वनाधिकार अधिनियम का संतुलित क्रियान्वयन आवश्यक है। “जिन्होंने वन संरक्षण में योगदान दिया है, उन्हीं को वनाधिकार का लाभ दिया जाना चाहिए,” उन्होंने कहा।
शहडोल सीसीएफ एस.के. पाण्डेय ने कार्यशाला की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इससे सामुदायिक दावों के समाधान की दिशा में मार्गदर्शन मिला है। उन्होंने कहा कि गांव की राजस्व सीमा, वनों की स्थिति और सामुदायिक कार्यों के लिए क्षेत्रीय अधिकारों पर संतुलन बनाना आवश्यक है।
सटीक मार्गदर्शन और प्रशिक्षण पर जोर
मास्टर ट्रेनर वाई. गिरि राव ने कहा कि सामुदायिक दावों में वन, राजस्व, आदिवासी कार्य, और ग्रामीण विकास विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश के 54903 गांवों में से 26555 गांवों में वनाधिकार अधिनियम के अंतर्गत दावे मान्य किए जा चुके हैं।
शरद लेले, मास्टर ट्रेनर, ने कहा कि सामुदायिक दावों में पूजा-पाठ, वनोपज संग्रहण, परंपरागत मार्गों का उपयोग, जल स्रोतों से लाभ जैसी गतिविधियाँ शामिल होती हैं। उन्होंने बताया कि एक गांव के निस्तार दावे पर विचार करते समय आसपास के गांवों की सहमति भी आवश्यक है। उन्होंने दावे दर्ज करने की प्रक्रिया और जरूरी दस्तावेजों की विस्तार से जानकारी दी।
वन-राजस्व सीमा विवाद व संरक्षण उपायों पर भी चर्चा
कार्यशाला में वन-राजस्व सीमा विवाद, पेसा एक्ट, और वन संरक्षण के उपायों पर भी विस्तार से चर्चा की गई। इसमें रीवा, सीधी, सतना, शहडोल, अनूपपुर, मऊगंज, और मैहर जिलों के कलेक्टरों के साथ-साथ जिला पंचायत सीईओ, वन मंडलाधिकारी, आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त और ट्राइबल विभाग के संयोजक उपस्थित रहे।
कार्यशाला के समापन पर उपायुक्त ट्राइबल ऊषा अजय सिंह ने आभार व्यक्त किया।








