एक राष्ट्र, एक चुनाव: कैबिनेट ने दी मंजूरी, लोकतंत्र में बड़े सुधार की तैयारी
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (One Nation, One Election) के प्रस्तावित बिल को मंजूरी दे दी है। यह कदम भारतीय लोकतंत्र और चुनाव प्रक्रिया में बड़ा बदलाव ला सकता है।
यह बिल संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा, जिसके बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजने की योजना है। सरकार ने इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों, विशेषज्ञों और संबंधित पक्षों के साथ व्यापक चर्चा का आश्वासन दिया है।
संविधान में होंगे बड़े बदलाव
बिल के तहत लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने के लिए संविधान के कई अनुच्छेदों में संशोधन की आवश्यकता होगी।
- अनुच्छेद 83(2): लोकसभा की अवधि और भंग करने के प्रावधान में बदलाव।
- अनुच्छेद 172: राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के साथ संरेखित करना।
- अनुच्छेद 327: एक साथ चुनाव कराने के लिए संवैधानिक प्रावधान।
इसके अतिरिक्त, केंद्र शासित प्रदेशों जैसे दिल्ली और पुदुचेरी की विधानसभाओं को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा।
उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशें
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में संविधान में 15 और अन्य कानूनों में 18 संशोधनों की सिफारिश की थी। समिति ने चुनाव प्रक्रिया को चरणबद्ध तरीके से लागू करने का सुझाव दिया है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
- समर्थन: बीजेपी, बीजेडी और जेडीयू जैसे दलों ने इस पहल का समर्थन करते हुए इसे समय और संसाधनों की बचत का जरिया बताया।
- विरोध: कांग्रेस, टीएमसी और अन्य विपक्षी दलों ने इसे संघवाद और क्षेत्रीय स्वायत्तता पर खतरा बताया।
आगे की राह
सरकार का मानना है कि इस पहल से प्रशासनिक स्थिरता और विकास को गति मिलेगी। हालांकि, यह पहल राजनीतिक सहमति और व्यापक संवैधानिक सुधारों के बिना संभव नहीं होगी।
क्या यह बदलाव भारतीय लोकतंत्र को नई दिशा देगा या राजनीतिक टकराव का कारण बनेगा? यह देखना दिलचस्प होगा।








