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सीधी:चार महीने से ठंडा पड़ा प्रसूता रसोई, मां बनने आई महिलाएं भूखे पेट, जिम्मेदार गर्म कुर्सियों पर व्यस्त

सीधी:चार महीने से ठंडा पड़ा प्रसूता रसोई, मां बनने आई महिलाएं भूखे पेट, जिम्मेदार गर्म कुर्सियों पर व्यस्त

बहरी (सीधी)।
सीधी जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सिहावल और उसके अधीन आने वाले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम का ‘ममता भरा भोजन’ पिछले चार महीने से ठंडा पड़ा है। वजह? 31 मार्च 2025 को समूह का टेंडर खत्म हो गया और उसके बाद से किचन के बर्तन जैसे सूने पड़े हैं, वैसे ही प्रसव हेतु आने वाली महिलाएं भी भोजन के इंतज़ार में सूनी निगाहों से देखती रह जाती हैं।

राज्य सरकार ने इस योजना के तहत प्रसव कराने वाली महिलाओं को भोजन और चाय-नाश्ते की व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश दिए थे। लेकिन खंड चिकित्सा अधिकारी के पूर्व आदेशों के बावजूद बहरी, पोखरा, नकझर सहित कई स्वास्थ्य केंद्रों के किचन का चूल्हा अब तक नहीं जला।

चार महीने से भूखी ‘ममता’
स्थिति यह है कि गर्भवती महिलाएं, जो अस्पताल तक पहुंचने में ही थक जाती हैं, उन्हें प्रसव के बाद गर्म खाना तो दूर, एक कप चाय भी नसीब नहीं हो रही। भोजन व्यवस्था बंद होने से कई बार प्रसूताओं के परिजनों को खुद ही बाहर से इंतजाम करना पड़ रहा है।

भुगतान में ‘भूख’, अफसरों में ‘पेट भर’
जिस समूह ने सालों तक यह सेवा दी, उसे पिछले एक साल से भुगतान तक नहीं किया गया। उल्टा, दूसरे अस्पतालों का भुगतान निपटा दिया गया, लेकिन इनका बकाया फाइलों में धूल खा रहा है। समूह संचालक अब अपना मेहनताना पाने के लिए विभाग के चक्कर काट रहा है।

क्या वरिष्ठ अधिकारी अंधे-बहरे हैं?
सवाल यह उठता है कि क्या वरिष्ठ अधिकारियों को इन चार महीनों से ठंडे पड़े किचन की भनक तक नहीं लगी, या यह भी विभाग की सोची-समझी अनदेखी है? आखिर गर्भवती महिलाओं के पेट पर यह वार क्यों? क्या जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी ‘फाइलों के पेट’ में ही पच जाएगा?

नतीजा साफ है —
जहां सरकार मातृत्व सम्मान की बात करती है, वहीं जमीनी हकीकत यह है कि अस्पताल में मां बनने आई महिलाएं भूखे पेट ‘सरकारी ममता’ का इंतज़ार कर रही हैं, और जिम्मेदार अधिकारी कागज़ी योजनाओं की रजाई ओढ़ कर चैन की नींद सो रहे हैं।

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