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SIDHI: 1 साल से नहीं मिला वेतन: बहरी स्वास्थ्य केंद्र में जननी योजना की रसोइयों की पीड़ा

SIDHI: 1 साल से नहीं मिला वेतन: बहरी स्वास्थ्य केंद्र में जननी योजना की रसोइयों की पीड़ा

भोजन-नाश्ता बंद, माताओं को सुविधा नहीं, कर्मचारियों को मेहनताना नहीं — आखिर कब मिलेगा न्याय?

सीधी | 2 मई 2025
सीधी जिले के सिहावल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अंतर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बहरी में प्रियंका स्व-सहायता समूह की महिलाएं बीते एक साल से बिना वेतन के काम कर रही हैं। जननी शिशु सुरक्षा योजना के तहत आने वाली गर्भवती महिलाओं को भोजन और नाश्ता उपलब्ध कराने का यह कार्य समूह ने 8 जून 2024 से 31 मार्च 2025 तक लगातार किया — लेकिन अब तक उन्हें एक रुपये का भी भुगतान नहीं मिला।

न खाना मिल रहा, न मेहनत का फल

31 मार्च 2025 के बाद अस्पताल में प्रसव हेतु आने वाली महिलाओं को अब भोजन या चाय-नाश्ता नहीं मिल रहा है। समूह की मेहनत की अनदेखी करते हुए प्रशासन ने चुप्पी साध ली है। “बजट नहीं है” — यह जवाब समूह संचालिकाओं को हर बार सुनने को मिलता है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि बाकी जगहों पर भुगतान कर दिया गया है, लेकिन बहरी केंद्र की महिलाएं अब भी इंतजार में हैं।

12 महीने से रसोइयों को नहीं मिला वेतन

स्वास्थ्य केंद्र में काम करने वाली रसोइयों और सामग्री उपलब्ध कराने वालों को 12 महीने से भुगतान नहीं किया गया है। इससे उनके सामने रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करना भी मुश्किल हो गया है।

न माताओं को भोजन, न कर्मचारियों को सम्मान

जननी शिशु सुरक्षा योजना का उद्देश्य प्रसव के समय महिलाओं को पोषण और आराम देना था, लेकिन यहां योजना खुद अस्पताल की दीवारों में दम तोड़ रही है। स्वास्थ्य केंद्र पर प्रसव के लिए आने वाली माताओं को अब नाश्ता और चाय तक नसीब नहीं हो रही।

प्रशासन का असंवेदनशील रवैया

बार-बार आग्रह के बावजूद ज़िम्मेदार अधिकारी “बजट नहीं आया” का बहाना बना रहे हैं। सवाल उठता है — अगर राज्य से बजट नहीं आया तो बाकी केंद्रों का भुगतान कैसे हुआ? कहीं यह भ्रष्टाचार, भेदभाव या लापरवाही तो नहीं?


क्या कहता है समूह

“हमने बिना रुके पूरे साल सेवा दी, लेकिन अब परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। अधिकारियों के पास जाते हैं, तो सिर्फ टालमटोल मिलता है।”
– प्रियंका स्व-सहायता समूह की संचालिका


अब सवाल यह है कि जब सरकार महिला सशक्तिकरण और स्वास्थ्य सुरक्षा की बातें करती है, तो ज़मीनी हकीकत में सेवा देने वालों को ही क्यों अनदेखा किया जाता है? जिम्मेदार कब जागेंगे और कब इन कर्मठ महिलाओं को उनका हक और सम्मान मिलेगा?

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