एनसीएल की काली करतूत: जयंत-दूधिचुआ परियोजना से निकलती कोयले की धूल ने नाले को भी कर दिया काला
सिंगरौली | विशेष रिपोर्ट
मध्यप्रदेश का सिंगरौली जिला, जो एक ओर देश की ऊर्जा राजधानी के रूप में जाना जाता है, वहीं दूसरी ओर लगातार बढ़ते प्रदूषण और पर्यावरणीय लापरवाहियों का प्रतीक भी बनता जा रहा है। ताजा मामला एनसीएल (नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) की जयंत और दूधिचुआ परियोजनाओं से जुड़ा है, जहाँ कोयला उत्खनन से निकलने वाली बारीक धूल और अपशिष्ट पदार्थों को खुलेआम नालों में बहाया जा रहा है।
नाला कोयले से भी अधिक काला
स्थानीय लोगों द्वारा लिए गए वीडियो और तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है कि परियोजना क्षेत्र से निकलने वाला नाला गाढ़े काले रंग का हो गया है, मानो उसमें कोयले की स्लरी बह रही हो। इससे न केवल आसपास का जल दूषित हो रहा है, बल्कि खेती, पशुपालन और घरेलू उपयोग में आने वाला पानी पूरी तरह अनुपयोगी हो चुका है।
स्थानीयों का दर्द
क्षेत्रवासियों का कहना है कि बीते कई महीनों से यह स्थिति बनी हुई है। लेकिन एनसीएल प्रबंधन द्वारा इस ओर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
“नाले का पानी अब सिंचाई के लायक नहीं रहा। जानवर भी इसे पीने से कतराते हैं। बच्चे बार-बार बीमार हो रहे हैं।”
— कमल सिंह, किसान, जयंत क्षेत्र
“हमने कई बार प्रशासन को शिकायत दी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। एनसीएल सिर्फ मुनाफा देखती है, इंसान और प्रकृति नहीं।”
— सीमा देवी, स्थानीय महिला
पर्यावरण नियमों की खुली धज्जियाँ
भारत सरकार के पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत, खनन कंपनियों को अपशिष्ट और धूल के निष्पादन हेतु वैज्ञानिक और सतत् उपाय अपनाना अनिवार्य है। लेकिन जयंत और दूधिचुआ परियोजना में कोई प्रभावी डस्ट कंट्रोल सिस्टम नज़र नहीं आता। जल निकासी के नालों में सीधा कोयला अपशिष्ट बहाया जा रहा है, जो एक गंभीर अपराध है।
स्वास्थ्य पर मंडराता खतरा
- कोयला धूल युक्त पानी में आर्सेनिक, सल्फर, और अन्य भारी धातुएं हो सकती हैं, जो त्वचा, आंख, लिवर और किडनी को प्रभावित कर सकती हैं।
- बच्चों और बुजुर्गों में सांस की बीमारी, एलर्जी, स्किन इंफेक्शन जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।
- पानी का PH लेवल असामान्य हो गया है, जिससे नालों का जैविक संतुलन बिगड़ गया है।
प्रशासन की चुप्पी और लोगों का गुस्सा
अभी तक जिला प्रशासन, पर्यावरण विभाग या प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई है। क्षेत्र में कई सामाजिक संगठनों और ग्रामीणों ने सड़क पर उतरने की चेतावनी दी है, अगर जल्द कार्यवाही नहीं हुई।
क्या कहते हैं पर्यावरण विशेषज्ञ?
“यह एक क्लासिक केस है पर्यावरणीय अपराध का। यदि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सक्रिय नहीं हुआ तो आने वाले वर्षों में यहाँ पीने लायक पानी भी नहीं बचेगा।”
— डॉ. रंजीत वर्मा, पर्यावरण वैज्ञानिक, रीवा विश्वविद्यालय
क्या कहता है नियम कानून?
- खनन क्षेत्र से अपशिष्ट जल सीधे किसी प्राकृतिक जल स्रोत में डालना ‘Environmental Offence’ है।
- इसके लिए 5 लाख रुपये तक जुर्माना और 5 वर्ष तक की जेल का प्रावधान है।
- परियोजना को तत्काल “एयर एंड वाटर एक्ट” के तहत नोटिस जारी किया जाना चाहिए।
???? अब सवाल यह है:
➤ क्या प्रशासन या एनसीएल प्रबंधन अब भी सोता रहेगा?
➤ क्या सिंगरौली को कोयले की धूल में तबाह कर दिया जाएगा?
➤ या फिर यह काली करतूत इतिहास में काले धब्बे की तरह दर्ज होगी?








